Fact Check
क्या वाकई राफेल डील से अनिल अंबानी को मिला 30000 करोड़ रु. का फायदा ?
Claim : कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोप लगाया है कि प्रधानमंत्री मोदी ने राफेल डील में गलत तरीके से अनिल अंबानी के जेब में 30000 करोड़ रुपए डाल दिए ।
Investigation :
हमने अपनी पड़ताल में राफेल डील से सम्बंधित तमाम तथ्यों का अध्ययन किया जो इंटरनेट पर उपस्थित हैं।विभिन्न समाचार एजेंसियों व वेबसाइट के लेख एवं रक्षा विशेषज्ञों की टिपण्णियों का अध्ययन करने के बाद हमें इस डील से जुड़ा एक तथ्य मालूम चला कि विमान उपलब्ध कराने वाली फ्रांसीसी कंपनी दसॉ को ऑफसेट के तहत भारतीय कंपनी को पार्टनर बनाने के लिए दसॉ ने DRAL ( दसॉ-रिलायंस ऐयरोस्पेस लिमिटेड) नामक एक जॉइंट-वेंचर बनाया। यह जॉइंट-वेंचर दसॉ रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड (DRAL) फरवरी 2017 में बनाया गया। BTSL, DEFSYS, काइनेटिक, महिंद्रा, मियानी, सैमटेल आदि कंपनियों के साथ दूसरे समझौते किए गए। हमें यह भी पता चला कि इस सन्दर्भ में सैकड़ों संभावित साझेदारों के साथ बातचीत अभी भी चल रही है।
इसके बाद हमें दसॉ के सीईओ एरिक ट्रेपियर का वो बयान मिला जिसमे वो अनिल अंबानी को 30000 करोड़ रुपए देने वाले दावे का खंडन करते हैं। ट्रेपियर ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने डील को लेकर जो भी आरोप लगाए हैं वो पूरी तरह से निराधार हैं। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी ने दसॉ और रिलायंस के बीच हुए ज्वॉइंट वेंचर को लेकर झूठ बोला है। दसॉ एविएशन के सीईओ ने कहा कि डील के बारे में जो भी जानकारी दी गई है, वह बिल्कुल सही है।
ट्रेपियर ने ऑफसेट के ज्वॉइंट वेंचर और कंपनियों को दिए गए हिस्से पर और ज्यादा स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि, “दसॉ और रिलायंस के बीच हुए ज्वॉइंट वेंचर में 49 फीसदी हिस्सा दसॉ और 51 फीसदी हिस्सा रिलायंस का है। इसमें कुल 800 करोड़ रुपये का इन्वेस्ट होगा, जिसमें दोनों कंपनियां 50-50 की हिस्सेदार होंगी।”
दसॉ के सीईओ ने यह भी कहा कि, “ऑफसेट को जारी करने के लिए हमारे पास 7 साल थे, जिसमें शुरुआती 3 साल में कुछ तय नहीं हो पाया था। उसके बाद 40 फीसदी हिस्सा 30 कंपनियों को दिया गया, इसमें से 10 फीसदी रिलायंस को दिया गया।”
अपनी पड़ताल के बाद हमने रक्षा विशेषज्ञों से भी विचार-विमर्श किया। उन्होने भी अनिल अंबानी की कंपनी को कुल डील का केवल 3% ही हिस्सा मिलने की बात कही, जो कि 30000 करोड़ नहीं हो सकता। यही बात इकोनॉमिक टाइम्स ने भी अपने एक लेख के जरिए कही है।
Result: Misleading